राष्ट्रीय काजू दिवस ( 23 नवंबर ) पर SCCN NEWS की विशेष स्टोरी
बहरागोड़ा–बरसोल – चाकुलिया वन क्षेत्र में काजू उत्पादन संकट में, संरक्षण की बड़ी चुनौती
23 नवंबर राष्ट्रीय काजू दिवस के अवसर पर जब पूरा देश पौष्टिक मेवे काजू के महत्व और इसकी उपयोगिता का जश्न मना रहा है, वहीं बहरागोड़ा–बरसोल वन क्षेत्र में काजू उत्पादन लगातार घटने से वन विभाग और स्थानीय वन समितियों की चिंता बढ़ती जा रही है।
पूर्वी सिंहभूम जिले के इस वन क्षेत्र को झारखंड का काजू बेल्ट कहा जाता है। लगभग 1200 हेक्टेयर वन भूमि पर काजू के घने वृक्ष फैले हुए हैं और हर साल यहां कई करोड़ रुपये का काजू उत्पादन होता है।
जनवरी–फरवरी में फूल, मार्च–अप्रैल में फल से लद जाते हैं वृक्ष
काजू के पेड़ों पर जनवरी से फूल आने शुरू हो जाते हैं।
मार्च–अप्रैल में ये वृक्ष फलों से लद जाते हैं और काजू बीज का संग्रह वन सुरक्षा समितियों द्वारा किया जाता है, जिससे हजारों ग्रामीणों की आजीविका जुड़ी है।
काजू जंगलों के सामने सबसे बड़ा खतरा – आग और लापरवाही
काजू उत्पादन के लिए मशहूर बरसोल–चाकुलिया क्षेत्र में गर्मी शुरू होते ही जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
पुराने वृक्ष तेजी से नष्ट हो रहे हैं
असामाजिक तत्वों की ओर से आग लगाने की घटनाएँ आम हैं
वन विभाग के पास फायर लाइन व आधुनिक संसाधनों का अभाव
आग तेजी से फैलती है और काजू के फल–फूल झुलस जाते हैं
विशेषज्ञों के अनुसार, जिन जंगलों में आग लगती है, उन क्षेत्रों में उस वर्ष काजू उत्पादन लगभग शून्य हो जाता है।
वन विभाग के सामने बड़ी चुनौती : संरक्षण एवं रखरखाव
काजू के पौधे ऊँचे नहीं होते, इसलिए यह जल्दी आग की चपेट में आ जाते हैं।
वन क्षेत्रों में सूखे पत्तों व झाड़ियों की अधिकता आग के फैलने को और तेज करती है।
काजू वृक्षों के लिए रखरखाव की कोई विशेष योजना नहीं
फायर लाइन की कमी
संसाधनों का अभाव
वन सुरक्षा समितियों पर पूरा भार
स्थानीय लोगों का कहना है कि हर वर्ष आग से लाखों रुपये की काजू फसल नष्ट हो जाती है, और इसकी सुरक्षा को लेकर ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।
राष्ट्रीय काजू दिवस : काजू की विरासत और इतिहास
हर साल 23 नवंबर को राष्ट्रीय काजू दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य काजू की पौष्टिकता, इसके व्यंजनों में महत्व और आर्थिक योगदान को रेखांकित करना है।
काजू की यात्रा : ब्राज़ील से भारत तक
काजू की उत्पत्ति ब्राज़ील में हुई
16वीं शताब्दी में पुर्तगाली इसे भारत, अफ्रीका और एशिया में लेकर आए
आज भारत दुनिया के प्रमुख काजू उत्पादक देशों में शामिल है
झारखंड का बरसोल–बहरागोड़ा चाकुलिया क्षेत्र राज्य के शीर्ष काजू उत्पादक इलाकों में से है
काजू सिर्फ स्वादिष्ट नहीं, यह आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, हेल्दी फैट और प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत भी है।
काजू संरक्षण : जरूरत सकारात्मक कदमों की
राष्ट्रीय काजू दिवस के मौके पर क्षेत्र के ग्रामीणों और वन समितियों ने मांग की है कि—
काजू वनों में फायर लाइन तैयार की जाए
आग बुझाने के आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए जाएं
काजू वृक्षों के संवर्धन व रखरखाव की विशेष योजना बने
वन सुरक्षा समितियों को वित्तीय सहायता दी जाए
असामाजिक तत्वों पर सख्त कार्रवाई हो
वन विभाग द्वारा कुछ क्षेत्रों में काजू उत्पादन बढ़ाने के लिए नई पौधारोपण योजनाएँ शुरू की गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि संरक्षण पर ध्यान दिया जाए, तो पूर्वी सिंहभूम देश के प्रमुख काजू उत्पादन जिलों में अपना स्थान और मजबूत कर सकता है।










