बीएयू की 45वीं रबी अनुसंधान परिषद की बैठक

प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व कुलपति डॉ एसएस चहल ने वैज्ञानिकों से आग्रह किया है कि वे पानी का कुशल उपयोग करने वाली, ऊष्मा तनाव-सहिष्णु, उच्च पोषक तत्वों वाली जैव-संवर्धित फसल किस्मों के विकास पर काम करें, ताकि राज्य और देश में पोषण सुरक्षा की चुनौतियों का सामना किया जा सके। देश अब खाद्य सुरक्षा से आगे बढ़ चुका है और शोध को दलहन , तिलहन, सब्जियां, फल और मसालों जैसी उच्च गुणवत्ता व उच्च उपयोगिता वाली फसलों पर केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिससे किसानों की आय बढ़ सके।
डॉ चहल मंगलवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) की 45वीं रबी अनुसंधान परिषद की बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं और समस्याओं पर आधारित तथा प्रणाली-संवेदनशील शोध की आवश्यकता है, जो व्यावहारिक, और क्षेत्र के किसानों के लिए स्वीकार्य हो।
उन्होंने खेद व्यक्त किया कि झारखंड में बीज प्रतिस्थापन दर मुश्किल से 15–20 प्रतिशत है, जबकि पंजाब और हरियाणा में यह 60–70 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में झारखंड को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बीएयू, केवीके और राज्य सरकार की मशीनरी को गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन हेतु एकजुट होना चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिकों से अनुरोध किया कि वे राष्ट्रीय बीज विधेयक में सुधार के लिए अपने सुझाव दें, जो 8 दिसंबर तक सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है और वर्तमान संसद सत्र में पेश किया जा सकता है।
झारखंड सरकार के कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के विशेष सचिव गोपालजी तिवारी ने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि राज्य की कृषि को उत्पादन-केंद्रित के बजाय आय-केंद्रित बनाया जाए, क्योंकि झारखंड में कृषक परिवार की औसत आय राष्ट्रीय औसत की लगभग 50 प्रतिशत ही है। कृषि अनुसंधान एवं विकास दृष्टिकोण सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य, आर्थिक रूप से अनुकूल और राजनीतिक रूप से न्यायोचित होना चाहिए। केवीके वैज्ञानिकों को विशेष फसलों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए गांवों के समूह विकसित करने चाहिए, जिससे उन जिलों की पहचान बन सके; राज्य सरकार ऐसे प्रस्तावों को जमीन पर लाने के लिए हर संभव सहायता देगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे प्रयास प्रक्रिया-केंद्रित नहीं, बल्कि परिणाम-केंद्रित होने चाहिए।
बीएयू के कुलपति डॉ एससी दुबे ने राज्य में बीज उत्पादन अवसंरचना को मजबूत करने और झारखंड राज्य बीज नीति के क्रियान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि झारखंड में दालों की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जबकि बीज प्रतिस्थापन दर, उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग कम है और सिंचाई सुविधाएं भी सीमित हैं। ऐसे में रबी के दौरान विशेष रूप से धान कटाई के बाद खाली पड़ी भूमि (राइस फॉलो) को दलहन उत्पादन के लिए प्रयोग में लाए जाने की आवश्यकता है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने प्रमुख शोध उपलब्धियों का उल्लेख किया और बताया कि बीएयू वैज्ञानिकों द्वारा विकसित अनाज, दलहन, तिलहन और चारा फसलों की 10 किस्में जारी करने के लिए चिह्नित की गई हैं और प्रस्ताव राज्य वेराइटल रिलीज़ कमिटी को भेजा जाएगा। दो प्रगतिशील किसानों—चतरा के मायराल के नारायण यादव और रांची के लालगुटुवा की संगीता टिग्गा—को अभिनव खेती में विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
उप निदेशक अनुसंधान डॉ सीएस महतो ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन शशि सिंह ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *