झारखंड स्थापना दिवस: धरती अबुआ, संस्कृति अनूठी
झारखंड स्थापना दिवस: धरती अबुआ,
अनूठी
15 नवंबर 2025—आज झारखंड अपनी स्थापना का एक और वर्ष गर्व के साथ मना रहा है। यह वही धरती है जिसकी पहचान सिर्फ इसके घने जंगलों और खनिजों से नहीं, बल्कि इसके अदम्य संघर्ष, समृद्ध संस्कृति और बहुरंगी जनजीवन से होती है।
झारखंड का इतिहास जनआंदोलनों से भरा है। यहाँ के महान स्वतंत्रता सेनानी— *धरती आबा बिरसा मुंडा*, जिन्होंने ‘उलगुलान’ का बिगुल फूँका, *सिदो-कान्हू* जिन्होंने संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया, *फूलो-झानो*, *वीर बुधु भगत*, और तमाम असंख्य पहचाने-अनपहचाने वीर—इस धरती की आत्मा हैं। उनकी विरासत आज भी लोगों में वही जोश और आत्मसम्मान भरती है।
यह राज्य विविध संस्कृतियों का संगम है—मुंडा, संथाल, हो, उरांव, नागपुरी, खोरठा, कुरुख, प्रभु—all एक ऐसे ताने-बाने का हिस्सा हैं जो झारखंड को अतुलनीय बनाता है। यहाँ के त्यौहार—सरहुल, कर्मा, तुषू, सोहराय—प्रकृति से जुड़े हैं, और जनजातीय लोकनृत्य-मुसिक जैसे झूमर, छऊ, डोमकच अपनी लय में इस भूमि की कहानी कहते हैं।
भूगोल की दृष्टि से झारखंड प्रकृति का वरदान है। नेतरहाट के सूर्योदय, दशम और होंडा फॉल्स की कलकल ध्वनि, बेटला के घने वन, रांची की सुहानी जलवायु—यहां की हर छटा अलौकिक लगती है। खनिज संपदा ने इसे देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान दिया है, जबकि यहां के मेहनती लोग—किसान, मजदूर, खनिक, कलाकार, युवा—इसके भविष्य को आकार दे रहे हैं।
आज के दिन हम सिर्फ एक राज्य का जन्मदिन नहीं, बल्कि अपनी पहचान, संघर्ष और संस्कारों को सलाम करते हैं।









